बुधवार, १२ नोव्हेंबर, २०१४

II बोज II

II बोज II
आँसुओं के समंदरको जरा, आँखों में रहने दो..
बरसता है सावन, तो इसे बरसने दो..
बहते है अरमान तो कोई गीला नहीं..
गमो का बोज मगर, कुछ कम ज़रा होने दो..!!
*चकोर*
(सुनिल पवार)

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